Manoj kumarऐसे बचें दम घुटने से II दमा के शुरुआती लक्षण II दमा के उपचार II Chronic obstructive pulmonary disease II chronic obstructive pulmonary disease (copd) II chronic obstructive pulmonary disease treatment II lung disease symptoms II दमा के लक्षण हिंदी II दमा खांसी II अस्थमा पूरी तरह से ठीक हो सकता है II अस्थमा कैसे फैलता है
क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (Chronic obstructive pulmonary disease) (सीपीओडी) फेफड़ों से संबंधित गंभीर बीमारी है. इस मर्ज में फेफड़ों के टिश्यूज के क्षतिग्रस्त होने के परिणामस्वरूप पीड़ित व्यक्ति अच्छी तरह से साँस नहीं ले पाता. कालान्तर में यहस समस्या बद से बदतर होती जाती है.............
68 वर्षीय सुरेन्द्र कुमार अपने बेटे का सहारा लिए खाँसते हुए मेरे क्लीनिक पहुँचे. उस वक्त साँस लेने में उन्हें दिक्कत हो रही थी. चेकअप और जांचों के निष्कर्ष से पता लगा कि वह क्रानिक आब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) से ग्रस्त हैं और कई महीनों से खाँसी का इलाज भी चल रहा था. वह धुमपान की लत के शिकार थे और पिछले कई महीनों से खाँसी, साँस में तकलीफ और बलगम बनने की शिकायत से ग्रस्त थे. रोगी ने मुझसे पूछा कि मैं कितने में ठीक हो जाऊँगा? इस पर मैंने जवाब दिया कि आपको जो रोग है, उसे काबू में तो रखा जा सकता है, लेकिन इसे पूरी तरह समाप्त (क्योर) नहीं किया जा सकता है. यह सुनकर रोगी के चेहरे पर निराशा नजर आयी, लेकिन मैंने जब रोगी को यह बताया कि सीओपीडी से पीड़ित लोगों के लिए पुनर्वास कार्यक्रम के अंतर्गत व्यायाम, रोग का प्रबन्धन और उसकी काउंसिलिंग भी की जाती है, जिसके परिणामस्वरूप वह बीमारी के होते हुए भी सामान्य जिन्दगी जी सकता है, तब उनका चेहरा ख़ुशी से दमक उठा. मैंने उन्हें यह भी बताया कि इस कार्यक्रम के जरिए किस तरह रोगी के जीवन की गुणवत्ता में सुधार आता है.
लक्षणों के बारे में :
1. सबसे पहले रोगी को खाँसी आती है.
2. खाँसी के साथ बलगम भी निकलता है. पीड़ित व्यक्ति की साँस फूलती है.
3. रोगी लंबी अवधि तक गहरी साँस नहीं ले पाता. कालान्तर में यह स्थिति बिगड़ती जाती है. व्यायाम करने के बाद तो मरीज की हालत और भी बिगड़ जाती है.
4. सीओपीडी की गंभीर अवस्था कॉरपल्मोनेल की समस्या पैदा कर सकती है. कॉरपल्मोनेल की स्थिति में हृदय द्वारा फेफड़ों को रक्त की आपूर्ति करने में उसे अतिरिक्त परिश्रम करना पड़ता है. कॉरपल्मोनेल के लक्षणों में एक लक्षण पैरों और टखने में सूजन आना है.
5. तेज खाँसी आने से पीड़ित व्यक्ति को कुछ समय के लिए बेहोशी भी आ सकती है.
6. मुख्य तौर पर यह बीमारी 40 साल के बाद ही शुरू होती है, लेकिन कभी-कभी इस उम्र से पहले भी व्यक्ति सीओपीडी से ग्रस्त हो सकता है.
7. बीमारी को गंभीर स्थिति में रोगी को साँस अंदर लेने की तुलना में साँस बाहर छोड़ने में ज्यादा वक्त लग सकता है.
8. रोगी द्वारा थकान महसूस करना और उसके वजन का कम होते जाना.
बेहतर है बचाव :
1. डॉक्टर के परामर्श से हर साल इन्फ्लूएंजा की और न्युमोकोकल (न्यूमोनिया से संबंधित) वैक्सिनें लगवानी चाहिए.
2. धूमपान कर रहे व्यक्ति के करीब न रहें. ऐसा इसलिए, क्योंकि जब धूमपान न करने वाले व्यक्ति के लिए कहीं ज्यादा नुकसान देह हो सकता है.
3. धूल, धुएँ और प्रदूषित माहौल से बचें.
4. रसोईघर में गैस और धुएँ की निकासी के लिए समुचित व्यवस्था होनी चाहिए.
जाँच की बात :
सीओपीडी की सबसे सटीक जाँच स्पाईरोमीट्री नामक परिक्षण है.
इलाज के बारे में :
सीओपीडी को नियंत्रित करने में स्टेरॉयड इनहेलर्स और एंटीकॉललीनेर्जिक टेबलेट्स की भूमिका महत्वपूर्ण है. अधिकतर दवाएं इनहेलर के रूप में इस्तेमाल की जाती है. कभी-कभी सीओपीडी की तीव्रता बहुत बढ़ जाती है, जिसे ‘एक्यूट एक्सासरबेशन’ कहते हैं. इस स्थिति का मुख्य कारण फेफड़ों में जीवाणुओं का संक्रमण होता है. इस संक्रमण के चलते फेफड़ों की कार्यक्षमता कम हो जाती है. रोगी के बलगम का रंग बदल जाता है, जो सफेद से रहा या पीला हो जाता है. रोगी तेजी से साँस लेता है और उसके हृदय की धड़कन बढ़ जाती है. यहीं नहीं, ‘एक्यूट एक्सासरबेशन’ की स्थिति में शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा कम हो जाती है. सीओपीडी में मौत होने का मुख्य कारण यही स्थिति होती है. इस गंभीर स्थिति में रोगी को बाईपैप थेरेपी और ऑक्सीजन दी जाती है.
क्या है कारण :
डॉक्टर का कहना है कि ‘सीओपीडी’ का एक प्रमुख कारण धुम्रपान है. अगर रोगी इस लत को नहीं छोड़ता, तो उसकी बीमारी गंभीर अख्तियार रूप कर सकती है. धूमपान से कालान्तर में फेफड़ों को नुकसान पहुंचाता है. फेफड़ों में सूजन आने लगती है, उनमें बगलम जमा होने लगता है. फेफड़े की सामान्य संरचना विकारग्रस्त होने लगती है. वही जो महिलाएं ग्रामीण या अन्य क्षेत्रों में चूल्हे पर खाना बनाती हैं, उनमें सीओपीडी से ग्रस्त होने के मामले कहीं ज्यादा सामने आते हैं. वहीँ जो लोग रासायनिक संयंत्रों में या ऐसे कार्यस्थलों में कार्य करते हैं, जहाँ के माहौल में कुछ नुकसानदेह गैसें व्याप्त हैं, तो यहाँ स्थिति सीओपीडी के जोखिम को बढ़ा सकती है. इसी तरह सर्दी-जुकाम की पुरानी समस्या भी इस रोग के होने की आशंका को बढ़ा देती है.
इन बातों पर दे ध्यान :-
प्राथमिक लक्षण म: साँस गहरी न ले पाना, खाँसी आना और बगलम बनना.
कारण : प्राथमिक कारण धूमपान करना है. इससे फेफड़ों में सूजन आ जाती है. अस्थमा (दमा) तो नियंत्रित हो जाता है, लेकिन दमा की तुलना में सीओपीडी को नियंत्रित करना कहीं ज्यादा मुश्किल है. कालान्तर में यह रोग बद से बदतर हो जाता है.
कैसे काबू करें : धूमपान छोड़े. वैक्सीन लगवाएं. रोग से पीड़ित लोगों के पुनर्वास की जरूरत होती है. अक्सर रोगी को ‘इन्हेल्ड ब्राकोडाइलेटर्स’ की जरूरत पड़ती है. कुछ पीड़ित लोगों को लंबे समय तक दी जाने वाली ऑक्सीजन थेरेपी से लाभ मिलता है. रोग की गंभीर स्थिति में फेफड़े के प्रत्यारोपण की भी आवश्यकता पड़ सकती है.
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