नई शुरुआत के लिए चाहिए धीरज II how to do something step by step II how to do something step by step ideas
कबीरदास ने करीब छा सौ साल पहले जो लिखा-कहा, उसका आज भी कोई
तोड़ नहीं. हम उनको सीख को आधार बनाएं तो जीवन सरल जान पड़ेगा. खुद में यकीन जागेगा.
कबीर की एक प्रचलित साखी है – ‘दुःख में सुमिरन सब करें और दुःख में करे न कोए, जो
सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होए.’ यह हमने खूब सुना पर मंथन नहीं किया और
परिणाम देख रहे हैं. यह दोहा केवल भक्ति की सीमित दृष्टि की बात नहीं करता बल्कि
इसमें विस्तार है. इसमें प्रकृति भी शामिल है, इससे सामंजस्य बिगाड़ लिया तो आज बड़ा
संकट झेल रहे हैं. अब ‘पॉजिटिव’ से दूर ‘निगेटिव’ के साथ रहने की नौबत आ गई (जोर
से हंसते हैं) यानी जो संक्रमित हैं उनसे दूर और जो बचे हैं उनके साथ रहना है. पर
प्रकृति इसी तरह अपना काम करती है. हमें भी बसअपना काम करना है. बस हम थोड़ा संयम
रखें. सहज रहें. कबीर ने यहाँ भी (importance of patience) कह दिया – ‘सहज सहज सब
कोई कहे सहज न जाने कोए’ जिन सहजे हरि मिले सहज जाने सोए’ यानी सहज रहें कहना आसान
है समझना मुश्किल. ईश्वर ने जिस काम के लिए हमें भेजा है, बस वह कर लें तो हरि भी
मिल जाएँगे. यह भी समझे कि अग्नि की प्रकृति जलाना है और यदि उसके पास खुद पहुँच
जाएँगे तो वह नहीं बख्शेगी, जला देगी. आग यानी बाहर संक्रमण के खतरे को समझकर भी
यदि निर्देशों का पालन नहीं करेंगे, बिना काम के घर से बाहर जाएँगे, अपना ख़याल
नहीं रखेंगे, समुचित सावधानी नहीं बरतेंगे तो सुरक्षित भी नहीं रह पाएंगे. भारत तो
विश्वास और प्रार्थना का केन्द्र रहा है. हम आत्मसंतुलन और संयम से नई शुरुआत की
तैयारी कर सकें, मैं यही प्रार्थना करता हूँ.
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