Manoj kumar
सुखी लाल मिर्च II लाल मिर्च खाने के फायदे II lal mirch II lal mirch powder benefits II lal mirch
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देश विदेश के भोजन व्यंजनों के साथ मिलकर
उनका स्वाद चटख बनाने में खूब योगदान देती रही है खूबसूरत रंगत और तेज झार वाली
लाल मिर्च.......
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लाल मिर्च |
लाल छड़ी मैदान खड़ी :-
नई दुनिया से पहुंची नवेली लाल मिर्च ने बहुत
जल्दी मसालों की दुनिया की शाहजादी काली (सियाह) मिर्च
को भीतर रसोई से बेदखल कर दिया. आज
इसके मायके मैक्सिको के खान-पान से कहीं अधिक करीबी नाता भारतीय भोजन के साथ जुड़
चुका है. भारतीय उपमहाद्वीप के के लगभग हर प्रान्त तक यह पहुंच चुकी
है और कई ‘स्थानीय’ प्रजातियाँ स्वदेशी संतानें बन चुकी हैं.
किस्में है कई तरह के :
राजस्थान की सुर्ख नागौरी, जोधपुर
की राजसी मैथानी इस इलाके के मुँह को झुलसा देने वाले ‘लाल मांस’ के
साथ अभिन्न रूप से जुड़ी है. यहीं हरी मोटी और नाम मात्र की तीखी मिर्चों
से दर्जन प्रकार के मिर्ची बड़ा बनाए जाते हैं जिनके पेट में मसालेदार
आलू की पीठी भरकर बाहर बेसन की हल्की परत चढ़ाकर तला जाता है.
महाराष्ट्र में कोल्ह्पुर की ‘संकलेश्वरी’ मिर्च मशहूर है जो
‘लाल रस्से’ में जान डालती है. जिसका ताप कम करने के लिए मुँह में तत्काल ‘सोलकड़ी’
डालने की जरूरत पड़ती है. ‘लंका’ नाम की छोटी गोलाकार पर बेहद तीखी मिर्च का
साम्राज्य बंगाल में फैला है. इसे अंग्रेजी में ‘बोर्ड चिली,
कहते हैं और यह थाईलैंड तथा वियतनाम में भी बहुत लोकप्रिय है. भारत
के पूर्वोत्तरी राज्यों में पैदा होती है. ‘भूत झोलिया’ जिसके अन्य
नाम नागा मिर्ची और राजा मिर्ची है. सीए संसार की सबसे तीखी मिर्च माना
जाता है मैक्सिको को ‘जलापैनो’ से कहीं अधिक तेज. नेपाली इसे ‘डल्ला’
पुकारते हैं. कुछ विद्वानों का मानना है कि यह पुर्तगालियों के आने के पहले
से यहाँ विद्दमान थी. यह सुझाना तर्कसंगत लगता है क्योंकि भूटान के दुर्गम इलाके
में ‘एमा दात्सी, नामक व्यंजन बनाया जाता है जिसमें सिर्फ याक दे दूध का पनीर और
मिर्च पड़ती हैं. जाहिर है किआम देहाती भोजन दक्षिण अमेरिका की आयात पर
निर्भर नहीं हो सकता था.
हर डिश बन जाए हिट :
सबसे कम तीखी और रंग के लिए जानी जाने वाली लाल
मिर्च कश्मीरी मिर्च हा जो गोलाकार भी होती है और लंबी भी. कश्मीरी वाजवान में ‘मर्त्वांगन
कोरमा’ का ख़ास स्थान है जिसके नाम से ही यह संकेत मिल जाता है कि इसमें
मांस की जुगलबंदी मिर्च के साथ साधी जाती है. ‘रोगन जोश’ और कोफ्ते
जैसे कई अन्य व्यंजनों में भी इसका इस्तेमाल होता है. मध्य प्रदेश की सैलाना
रियासत के शाही मेनू में ‘हरी मिर्च का
कीमा’ नायाब समझा जाता है. अवध के नफासतपसंद बावर्ची अपने कौशल का प्रदर्शन
करने के लिए लाल नहीं पीली मिर्च का इस्तेमाल करना पसंद करते रहे हैं. यह मिर्च
हरी को लाल होने तक सुखाए जाने के पहले ही बटोर ली जाती है. उत्तराखण्ड में
पैदा होने वाली मिर्चें मौसम के कारण सुर्खी पकड़ ही नहीं पातीं.
हर थाली की शोभा :
आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में ‘गुंटूर’ और
रसमपत्ती तो कर्नाटक में ‘बडगी’ नामक लाल मिर्च को उत्तम समझा जाता है.
तमिलनाडु में दही में भिगोकर सुखाई गई मिर्च मद्रासी पत्तल की शोभा बढ़ाती है.
दक्षिण के भोजन में लाल मिर्च का इस्तेमाल खुले हाथ से होता है.
आन्ध्र प्रदेश का ‘पोडी मसाला’ विदेशों में ‘गनपाउडर’ यानी बारूद के
नाम से पहचाना जाता है. इसे गीले भात के साथ थोड़ा सा नमक तथा तेल की कुछ बूंदे
मिलाकर भरपेट खया जा सकता है. वास्तव में महाराष्ट्र के खानादेश वाले इलाके
में लहसुन-लाल मिर्च का थेचा हो या उत्तर भारत में लाल
मिर्च-प्याज की चटनी यही गरीबपरवर भूमिका अदा करते रहे हैं.
साधन सपन्न ही नहीं वंचित वर्ग भी हरी और लाल मिर्च के अचार के साथ रूखी या चुपड़ी
रोटी के निवालों का आनंद ले सकता है. हरी मिर्च का सरसों वाला तथा लाल
मिर्च का भरवाँ गोरखपुरी-बनारसी अचार तो
विश्वविख्यात है.
बहुत कम लोगों को यह जानकारी है कि जिस पैकेटबंद लाल
मिर्च के पाउडर का हम रोज इस्तेमाल करते हैं वह कई प्रकार की लाल
मिर्च का मिश्रण होता है जिसमें विभिन्न प्रजातियों को तीखेपन, रंग
और स्वाद के लिए संतुलित मात्रा में मिलाया जाता है-कुछ वैसे ही जैसे चाय
की पत्तियों और कॉफ़ी की बीजों को. 17 वीं.-18वीं सदी के दखनी भक्त कवि पुरंदरदास
ने ‘पल-पल रंग बदलती कभी हरी, पिली और फिर लाल मिर्ची, की प्रशंसा
में एक स्तुति गान रचा है जहाँ कहा गया है कि ‘यह गरीबों की वफादार मित्र है,
स्वाद में लुभाने वाली पर ऐसी तीखी की कुछ पल के लिए विट्ठल का भजन तक भुला देती
है. मिर्च के महिमामंडन के लिए हमें हिन्दी फ़िल्मी गानों - ‘लाल छड़ी
मैदान खड़ी या हाय मिर्ची. हाय हम मिर्ची.’ सरीखे- से यह रचना
खाई अधिक सार्थक लगती है.
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