Manoj kumar
विश्व टीबी दिवस – 24 मार्च
टीबी एक जीवाणुजनित संक्रामक बीमारी है.
इसे समय रहते सही उपचार और दवा से रोका जा सकता है. इलाज पूरा न होने पर इसका
संक्रमण बनता है मौत का सबब.....
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टीबी बीमारी लक्षण उपचार |
टीबी संक्रमण से फैलने वाली बीमारी है,
ट्यूबरक्लोसिस बैक्ट्रिया से होता है. इस बीमारी में फेफड़ा अधिक प्रभावित होता है.
इसके साथ मुँह, लीवर, किडनी, गले, ब्रेन ट्यूमबर होते है. जिसे चिकित्सक की सलाह
और सावधानी बरत कर रोका जा सकता है. यदि टीबी के मरीज के संपर्क में आने से रोग लग
गया हो तो तुरंत इलाज कराएँ और किसी भी सूरत में इलाज पूरा करें. यदि इलाज पूरा न
हुआ हो या दवाएं लेने में लापरवाही बरती जाए तो मरीज के शरीर में मौजूद टीबी के
रोगाणु दी जा रही दवा के प्रति प्रतिरोधक क्षमता पैदा कर लेते हैं. ऐसा होने पर
टीबी की सामान्य दवा रोगाणु को मारना बंद कर देती है. ऐसे में मरीज को दूसरी
श्रेणी की दवाएं दी जाती हैं, जो लंबे समय तक खानी पड़ती हैं.
क्यों होती है टीबी :
टीबी हवा के माध्यम से के व्यक्ति से दूसरे
व्यक्ति में फैलने वाली बीमारी है. जब कोई टीबी संक्रमित व्यक्ति खांसता है तो
स्वस्थ व्यक्ति सक्रमित व्यक्ति के खांसने अथवा छींकने के कारण उड़ने वाली नमी के कणों
में साँस लेता है और इस बीमारी के संक्रामण का शिकार बनता है. यह रोग बंद कमरों
में जहाँ आसानी से हवा का आना नहीं होता है वहाँ-तेजी से फैलता है.
इनमें होती संक्रमण की आशंका :
जो लोग सिलकोसिस यानी, स्लेट,पेन्सिल उघोगों में काम करते हैं, उन्हें इस बीमारी के संक्रमण की संभावना अधिक होती है. ऐसे लोगों के फेफड़े इस बैक्टीरिया से जल्दी प्रभावित होते हैं. गंभीर गुर्दे की बीमारी, धुम्रपान, कुपोषण, अंग प्रत्यारोपण, कैंसर रोगियों में टीबी के बैक्टीरिया का संक्रमण बहुत धीरे-धीरे कम होता है. यदि टीबी की दवाएं लेने के कुछ हफ़्तों बाद कोई बेहतर महसूस करता हैं, तो इसका मतलब यह नहीं है कि संक्रमण पूरी समाप्त हो गया है, इसलिए पूरा इलाज लिया जाना अत्यंत आवश्यक है. टीबी के मरीज इस बीमारी के रोगाणुओं को दूसरों तक फैला सकते हैं, लेकिन अगर वे दवा को सही तरीके से ले रहे हैं तो रोगाणुओं को दूसरों को नहीं बाँट सकेंगे.
मुख्य लक्षण:
वजन कम होना
साँस लेने में दिक्कत होना
बुखार लगना
थकावट होना
पसीना आना
खाँसी
पोषक आहार आवश्यक है :
टीबी की दवाओं के साइड इफेक्ट्स भी होते हैं.
बैठने, खड़े होने या लेटने पर चक्कर आना, भूख होने या लेटने पर चक्कर आना, भूख नहीं
लगना, पेट की खराबी, मतली या उल्टी, सीने में दर्द या नाराजगी एवं चिड़चिड़ापन, बुखार
के साथ या फ्लू जैसे लक्षण, गंभीर थकान या कमजोरी, बुखार या ठंड लगना ऐसी परेशानियों
में शामिल है. इससे ग्रसित रोगी की कई बार त्वचा पर दाने या खुजली भी हो सकती है.
मरीज की त्वचा पर लाल और बैंगनी धब्बे, नाक से खून आना, या मसूड़ों से खून बहना,
मरीज के हाथ और पैर में दर्द की शिकायत भी हो सकता है.
इनसे बचने के लिए आवश्यक है कि रोगी का खान-पान
पोषक और पर्याप्त हो.
बच्चे के जन्म के वक्त BCG का टीका लगान
Good information
जवाब देंहटाएंAur likhiye
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